Poem on kshatriye
मै सीता का
प्रतिरूप ,सूर्य वंश की लाज रखाने आई हूँ!1!
मै विदुला का
मात्रत्व लिए,
तुम्हे रण-क्षेत्र में
भिजवाने आई हूँ !
मै पदमनी बन आज,फिर से ,जौहर की आग भड़काने आई हूँ !३!
मै द्रौपदी का
तेज़ लिए , अधर्म का नाश कराने आई हूँ !
मै गांधारी बन
कर ,तुम्हे सच्चाई का ज्ञान कराने आई हूँ !४!
मै कैकयी का
सर्थीत्त्व लिए ,तुम्हे असुर-विजय
कराने आई हूँ !
मै उर्मिला बन ,तुम्हे तम्हारे क्षत्रित्त्व का संचय कराने
आई !५!
मै शतरूपा बन ,तुम्हे सामने खडी , प्रलय से लड़वाने आई हूँ!
मै सीता बन कर ,फिर से कलयुगी रावणों को मरवाने आई हूँ!६!
मै कौशल्या बन
आज ,राम को धरती पर पैदा करने आई हूँ !
मै देवकी बन आज
,कृष्ण को धरती पर पैदा करने आई हूँ !७!
मै वह
क्षत्राणी हूँ जो, महा काळ को नाच
नचाने आई हूँ !
मै वह
क्षत्राणी हूँ जो ,तुम्हे
तुम्हारे कर्तव्य बताने आई हूँ !८!
मै मदालसा का
मात्रत्त्व लिए, माता की माहिमा,दिखलाने आई हूँ !
मै वह
क्षत्राणी हूँ जो ,तुम्हे फिर से
स्वधर्म बतलाने आई हूँ !९!
हाँ तुम जिस
पीड़ा को भूल चुके, मै उसे फिर
उकसाने आई हूँ !
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