Friday, 28 November 2014

घोरि और प्रिथ्विरज का ज़ुध

गौरी और पृथ्वीराज का युद्ध

किंवदंतियों के अनुसार गौरी ने 18 बार पृथ्वीराज पर आक्रमण किया था, जिसमें 17 बार उसे पराजित होना पड़ा। किसी भी इतिहासकार को किंवदंतियों के आधार पर अपना मत बनाना कठिन होता है। इस विषय में इतना निश्चित है कि गौरी और पृथ्वीराज में कम से कम दो भीषण युद्ध आवश्यक हुएथे, जिनमें प्रथम में पृथ्वीराज विजयी और दूसरे में पराजित हुआ था।वे दोनों युद्ध थानेश्वर के निकटवर्ती तराइन मै पृथ्वीराज
की सेना कहा जाता है कि पृथ्वीराजकी सेना में तीन सौ हाथी तथा 3,00,000 सैनिक थे, जिनमें बड़ी संख्या में घुड़सवार भी थे। दोनों तरफ़ की सेनाओं की शक्ति के वर्णन में अतिशयोक्ति भी हो सकती है। संख्या केहिसाब से भारतीय सेना बड़ी हो सकती है, पर तुर्क सेना बड़ी अच्छीतरह संगठित थी। वास्तव में यह दोनों ओर के घुड़सवारों का युद्ध था। मुइज्जुद्दीन की जीत श्रेष्ठ संगठन तथा तुर्की घुड़सवारों की तेज़ी और दक्षता के कारण ही हुई। भारतीय सैनिकबड़ी संख्या में मारे गए।तुर्की सेनाने हांसी, सरस्वती तथा समाना के क़िलों पर क़ब्ज़ा कर लिया। इसके बादउन्होंने अजमेर पर चढ़ाई की और उसेजीता। कुछ समय तक पृथ्वीराज को एकज़ागीरदार के रूप में राजकरने दिया गया क्योंकि हमें उस काल के ऐसे सिक्के मिले हैं जिनकी एकतरफ़ 'पृथ्वीराज' तथा दूसरी तरफ़ 'श्री मुहम्मदसाम' का नाम खुदा हुआ है। पर इसके शीघ्र ही बाद षड़यंत्र के अपराधमें पृथ्वीराज को मार डाला गया और उसके पुत्र को गद्दी पर बैठाया गया। दिल्ली के शासकों को भी उसका राज्य वापस कर दिया गया, लेकिन इस नीति को शीघ्र ही बदल दिया गया। दिल्ली के शासक को गद्दी से उतार दिया और दिल्ली गंगा घाटी पर तुर्कों के आक्रमण के लिए आधार स्थानबन गई। पृथ्वीराज के कुछ भूतपूर्व सेनानियों के विद्रोह के बाद पृथ्वीराज के लड़के को भीगद्दी से उतार दिया गया और उसकी जगह अजमेर का शासन एक तुर्की सेनाध्यक्ष को सौंपा दिया गया। इस प्रकार दिल्ली का क्षेत्र और पूर्वी राजस्थान तुर्कोंके शासन में आ गया।

गुजरात के भीमदेव के साथ युद्ध गुजरात में उस समय चालुक्य वंश के महाराजा भीमदेव बघेला का राज था। उसने पृथ्वीराज के किशोर होने का फायदा उठाना चाहता था। यही विचार कर उसने नागौर पर आक्रमण करने का निश्चयकर लिया। पृथ्वीराज किशोर अवश्य था परन्तु उसमे सहस - सयम और निति - निपुणता के भाव कूट - कूट कर भरे हुवे थे।जब पृथ्वीराज को पता चला के चालुक्य राजा ने नागौर पर अपना अधिकार करना चाहते है।तो उन्होंने भी अपनी सेना को युद्ध के लिए तैया रहने के लिए कहा। भीमदेव ने ही पृथ्वीराज के पिता सोमेश्वर कोयुद्ध में हरा कर मृत्यु के घाट उतरदिया था। नौगर के किले केबहार भीमदेव के पुत्र जगदेव के साथ पृथ्वीराज का भीषण संग्राम हुआ जिसमेअंतत: जगदेव की सेना ने पृथ्वीराज की सेना के सामने घुटने टेक दिए। फलसवरूप जगदेव ने पृथ्वीराज से संधि कर ली और पृथ्वीराज ने उसे जीवनदान दे दिया और उसके साथ वीरतापूर्ण व्यव्हार किया। जगदेव के साथ संधि करके उसको अकूत घोड़े, हठी और धन सम्पदा प्राप्तहुयी। आस पास के सभी राज्यों में सभी पृथ्वीराज की वीरता, धीरता और रन कोशल का लोहामानने लगे। यहीं से पृथ्वीराज चौहान का विजयी अभियान आगे की और बढने लगा।


पृथ्वीराज और संयोगिता का प्रेम औरस्वयंवर संयोंगिता कन्नौज के राजा जयचंद की पुत्री थी।वह बड़ी ही सुन्दर थी, उसने भी पृथ्वीराज की वीरता के अनेक किस्से सुने थे। उसे पृथ्वीरा देवलोक से उतरा कोई देवताहीप्रतीत होता था। वो अपनी सहेलियों सेभी पृथ्वीराज के बारे में जानकारिय लेती रहती थी। एकबार दिल्ली से पन्नाराय चित्रकार कन्नौज राज्य में आया हुआथा। उसके पास दिल्ली के सौंदर्य और राजा पृथ्वीराज के भी कुछदुर्लभ चित्र थे। राजकुमारी संयोंगिता की सहेलियों ने उसको इस बारेमें जानकारी दी। फलसवरूप राजकुमारी जल्दी ही पृथ्वीराज का चित्र देखने के लिए उतावल हो गयी। उसने चित्रकार को अपने पास बुलाया औरचित्रदिखने के लिए कहा परन्तु चित्रकार उसको केवल दिल्ली के चित्र दिखता रहा परन्तु राजकुमारी के मन में तो प्रिथीराज जैसायोधा बसा हुआ था। अंत मेंउसने स्वयं चित्रकार पन्नाराय से महाराज पृथ्वीराज का चित्र दिखने का आग्रह किया। पृथ्वीराज का चित्र देखकर वो कुछ पल के लिए मोहित सी हो गयी। उसने चित्रकार से वह चित्र देने का औरोध किया जिसे चित्रकार ने सहर्ष स्वीकारका लिया। इधर राजकुमारी के मन में पृथ्वीराज के प्रति प्रेम हिलोरे ले रहा था वहीँ दूसरी तरफ उनके पिताजयचंद पृथ्वीराज की सफलता से अत्यंत भयभीत थेऔर उस से इर्ष्य भाव रखतेथे। चित्रकार पन्नाराय ने राजकुमारी का मोहक चित्र बनाकर उसको पृथ्वीराज के सामने प्रस्तुत किया। पृथ्वीराज भी राजकुमारी संयोगिता का चित्र देखकर मोहित हो गए। चित्रकार केद्वारा उन्हें राजकुमारीके मन की बात पता चली तो वो भी राजकुमारी के दर्शनको आतुर हो पड़े। राजा जयचंद हमेशा पृथ्वीराज को निचा दिखने का अवसर खोजता रहता था। यह अवसर उसे जल्दी प्राप्त हो गयाउसने संयोगिता का स्वयंवर रचाया और

पृथ्वीराज को छोड़कर भारतवर्ष के सभीराजाओ कोनिमंत्रित किया। और उसका अपमान करने के लिए दरबार के बहार पृथ्वीराज की मूर्ती दरबान के रूप में कड़ी कर दी। इस बात का पता पृथ्वीराज को भी लग चूका था और उन्होंने इसकाउसी के शब्दों और उसी भाषा में जवाब देने का मनबना लिया। उधर स्वयंवर में जब राजकुमारी संयोगिता वरमाला हाथो में लेकर राजाओको पर करती जा रही थी पर उसको उसके मन का वर नज़र नहीं आ रहा था। यह राजा जयचंद की चिंता भी बढ गयी। अंतत: सभी राजाओ को पर करते हुए वो जब अंतिम छोरपर पृथ्वीराज की मूर्ति के सामने से गुजरी तो उसने वहीँ अपने प्रियतम के गले में माला दल दी। समस्त सभा मेंहाहाकार मचगया। राजा जयचंद ने अपनी तलवार निकल ली और राजकुमारी को मरने के लिएदोड़े पर उसी समय पृथ्वीराज आगे बढ कर संयोगिता को थाम लिया और घोड़े पर बैठाकर निकल पड़े। वास्तव में पृथ्वीराज ने सवयम मूर्ति की जगहखड़े हो गएथे।

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